झूम खेती | Jhum Kheti

झूम खेती ( Jhum Kheti ) भारत में मुख्यतः पूर्वी पहाड़ियों क्षेत्रों में किया जाता है। झूम खेती कृषि का एक प्राचीन तरीका है। आज के इस Geography के Topic में हम झूम खेती के बारे में सबकुछ पढ़ेंगे।

 

झूम खेती ( Jhum Kheti ) : –
इस खेती के लिए सबसे पहले वनों को काटकर जला दिया जाता है। वनों के जलने से उत्पन्न राख मिट्टी को उपजाऊ बना देती है। इस उपजाऊ जमीन पर खेती होती है। और इस तरह से की जाने वाली खेती को हम झूम खेती कहते हैं।

 

भारत में झूम खेती को ही स्थानांतरित खेती भी कहा जाता है। किसानों के द्वारा कृषि के नई पद्धति से वनों का स्थाई रूप से विनाश हो जाता है। इस खेती के लिए किसानों को काफी मेहनत करनी पड़ती है

 

झूम खेती कहाँ होती है ( Jhum Kheti Kaha Hoti Hai ) ?
भारत के मिजोरम, मेघालय और अरुणाचल प्रदेश में झूम खेती की जाती है। भारत के तीन राज्यों में झूम खेती सबसे ज्यादा देखने को मिलती है। मिजोरम में झूम खेती सबसे ज्यादा होती है। झूम खेती ज्यादातर उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में की जाती है।

 

मिजोरम के लोग फसल काटने के बाद गाँव में त्यौहार मनाते हैं। जिसमें सभी लोग साथ में खाना पकाते हैं और साथ में खाते हैं। और यहां के लोग खूब मजे करते हैं।

 

फसल काटने के बाद गाँव के लोग एक विशेष प्रकार के नाच करते हैं जिसे ” चेराओ नाच ” कहते हैं। ”चेराओ” भारत के मिजोरम राज्य में की जाती है।

 

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झूम खेती ( Jhum Kheti ) करने का तरीका : –
झूम खेती में एक फसल जब कट जाता है तो जमीन को कुछ साल तक खाली छोड़ दिया जाता है। खाली जगह होने के कारण जमीन पर बांस या अन्य पौधे उग जाते हैं। उस जंगल को उखाड़ते नहीं हैं बस उस जंगल को काटकर या गिरा कर जला देते हैं। जला हुआ जंगल खाद का काम करता है।

 

फिर जब खेती का समय आता है तब जमीन की जुताई की जाती है। झूम खेती में जमीन की गहरी जुताई नहीं किया जाता है। सिर्फ मिट्टी को हल्के से हिलाकर बीज छिड़क देते हैं। झूम एक आदिम प्रकार की कृषि है। इस तरह की स्थानांतरीय कृषि को श्रीलंका में चेना कहा जाता है।

 

झूम खेती में एक ही खेत में अलग – अलग तरह के बीज बो दिया जाता है जैसे : – मकई, सब्जियां, मिर्ची, और चावल इत्यादि। झूम खेती में मुख्य फसल चावल को उगाया जाता है। इस प्रकार की मिट्टी में 2 या 3 फसल उगाई जाती है।

 

झूम खेती में जब फसल बो दिया जाता है तो उस फसल के समय भी घास या पौधे उग जाते हैं। उस उगे हुए पौधों को उखाड़ते नहीं हैं सिर्फ जला देते हैं जिससे जमीन की उपजाऊ क्षमता बना रहता है।

 

इसके बाद इस भूमि को छोड़ दिया जाता है जिस पर पुनः पेड़ – पौधें उग आते हैं। किसान फिर से खेती करने के लिए दूसरी जंगली भूमि को साफ करते हैं। किसान कुछ वर्षो तक उस भूमि पर खेती करते हैं और फिर खेती करना बंद कर देते हैं क्योंकि उस भूमि में नमी ज्यादा समय के लिए नहीं रहती है।

 

इस प्रकार की खेती के लिए थोड़े – थोड़े समय के अंतर पर खेत बदलते रहते हैं जिसे स्थानांतरित खेती कहते हैं। यह खेती भारत के पूर्वोत्तर पहाड़ी क्षेत्रों में सबसे ज्यादा देखने को मिलती है।

 

झूम खेती करने के लिए पहाड़ी क्षेत्रों में पानी की कमी होती है। यह खेती प्रकृति पर निर्भर होती है। अगर वर्षा सही समय से होती है तो फसल अच्छी होती है। यदि वर्षा समय से नहीं होती है तो फसल नहीं उग पाते हैं।

 

झूम कृषि को हिन्देशिया में लदांग और रोडेशिया में मिल्पा कहते हैं। झूम कृषि से प्राकृतिक संसाधनों का बहुत नुकसान हुआ है।

 

झूम खेती से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न : –
1. झूम खेती को राजस्थान में किस नाम से जाना जाता है ?
Ans – राजस्थान में झूम खेती को वालरा कहते हैं।

 

2. झूम खेती को झारखंड में किस नाम से जाना जाता है ?
Ans – झारखण्ड में झूम खेती को कुरुवा कहते हैं।

 

3. आदिम कृषि किसे कहते हैं ?
Ans – झूम खेती को आदिम खेती के नाम से भी जाना जाता है।

 

4. मध्य प्रदेश में झूम खेती को किस नाम से जाना जाता है ?
Ans – मध्य प्रदेश में झूम खेती को बेवर नाम से जाना जाता है।

 

5. झूम खेती को English में क्या कहते हैं ?
Ans – झूम कृषि को English में Slash and Burn Farming कहा जाता है।

 

Conclusion : –  झूम खेती (Jhum Kheti ) के बारे में आपने पढ़ लिया है। झूम खेती आपके Exam के लिए एक महत्पूर्ण टॉपिक है। झूम खेती से सम्बंधित जितने भी छोटे – छोटे facts हो सकते हैं मैंने सबको इस topic के अंदर लिख दिया है।

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