भारत में समाजशास्त्र का अध्ययन

भारत में समाजशास्त्र का अध्ययन :-
19वीं सदी के प्रारंभ तक ऐसा कोई विज्ञान नहीं था जो समाज को सही तरह से अध्ययन कर सके।

इस समय विश्व में बहुत तेजी से समाज में परिवर्तन हो रहे हैं। और उन्हीं के परिणाम स्वरूप तीन बड़ी घटनाओं ने समाजशास्त्र के उदभव का मार्ग सुनिश्चित किया है।

भारत में समाजशास्त्र का अध्ययन सबसे पहले 1917 में कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफेसर ब्रजेन्द्रनाथ शील द्वारा हुआ था। समाजशास्त्र विषय के अंतर्गत हमारे समाज का वैज्ञानिक तरीके से अध्ययन किया जाता है। सबसे पहले 1914 में मुंबई विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र विभाग की स्थापना की गई थी।

भारत में समाजशास्त्र के विकास को तीन युगों में बांटा गया है :-
1. प्राचीन भारत में समाजशास्त्र का विकास
2. भारत में समाजशास्त्र का औपचारिक प्रतिस्थापन युग
3. स्वतंत्र भारत में समाजशास्त्र का व्यापक प्रसार युग

 

यूरोप में वाणिज्यिक क्रांति :-
इस क्रांति से कागजी मुद्रा का विकास हुआ। बैंकिंग व्यवस्था और मध्यम वर्ग का उदय हुआ। जिससे वहां के व्यापार & वाणिज्यिक में काफी तेजी से विस्तार हुआ है।

यह समय यूरोप में पुनर्जागरण का था। इसलिए इसे वैज्ञानिक क्रांति की संज्ञा दी जाती थी।

फ्रांसीसी क्रांति :-
इस क्रांति ने लोगों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक किया।
स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व जैसी विचारधारा का जन्म हुआ।

इस क्रांति के बाद फ्रांस में राजशाही का अंत हुआ एवं लोकतंत्र की स्थापना हुई।

रूसो, वाल्टेयर और मॉन्टेस्क्यू ने इस में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

औधोगिक क्रांति :-
इस क्रांति से उद्योगों का मशीनीकरण हुआ जिससे उत्पादन में वृद्धि हुई। जैसे पूंजीवाद का विकास, शहरों का विकास, श्रमिकों वर्ग का उदय।

इसके परिणाम स्वरूप श्रमिकों की सामाजिक एवं आर्थिक समस्या उजागर हुई। इस समस्या का अध्ययन करने के लिए समाजशास्त्र एक विषय के रूप में स्थापित हुआ।

1838 में ऑगस्ट काम्टे ने सर्वप्रथम समाजशास्त्र को एक विषय के रूप में पहचान दी। उन्होंने इसे शुरुआत में समाज भौतिकी कहा एवं कालांतर में समाज शास्त्र कहा।

भारत में सामाजिक अध्ययन प्राचीन समय से हो रहा है। जिसके साक्ष्य हमें रामायण, वेद, पुराण, आदि से मिलते हैं। परन्तु समाजशास्त्र की शुरुआत ब्रिटिश काल के दौरान हुई।

1919 में समाजशास्त्र विभाग की स्थापना की गई। और पैट्रिक गिड्स को इसका प्रथम अध्यक्ष बनाया गया।

भारतीय समाजशास्त्र में गोविन्द सदाशिव घुर्ये के योगदान पर टिप्पणी कीजिए।
इन्हें भारतीय समाजशास्त्र का जनक और संस्थापक भी माना जाता है। वैसे सम्पूर्ण विश्व में समाजशास्त्र का पिता अथवा जनक के नाम से आगस्त काम्टे प्रसिद्ध हैं। गोविन्द सदाशिव घुर्ये भारतीय समाज, जाति, और यहाँ के साधुओं के बारे में अध्ययन किए हैं।
इनकी प्रमुख कृतियां : –
1. Caste Class and Occupation
2. The Indian Sadhus
3. Vedic India

1924 में गोविन्द सदाशिव घुर्ये को समाजशास्त्र विभाग के प्रथम भारतीय अध्यक्ष के तौर पर चुना गया।

1917 में विश्वनाथ शील के प्रयासों से कलकत्ता विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र एक विषय के रूप शुरू हुआ।

1921 में समाजशास्त्र की शुरुआत लखनऊ विश्वविद्यालय में की गई। जिसमें राधा कमल मुखर्जी ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। 1923 में समाजशास्त्र विषय की शुरुआत आंध्र प्रदेश एवं मैसूर विश्वविद्यालय में की गई।

1952 में गोविन्द सदाशिव घुर्ये के प्रयासों से Indian Sociological Society की स्थापना की गई। इस Society के अलावा तीन अन्य संस्था भी समाजशास्त्र के क्षेत्र में काम कर रहे हैं।
1. Tata Institute of Social Sciences.
2. Tata Institute of Social Work.
3. Institute of Social Sciences.

गोविन्द सदाशिव घुर्ये पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारतीय समाजशास्त्र का निर्माण किए थे। वे हिन्दू सभ्यता में बहुत रूचि रखते थे। गोविन्द सदाशिव घुर्ये का जन्म महाराष्ट्र में 12 दिसंबर 1893 को हुआ था। गोविन्द सदाशिव घुर्ये का मृत्यु 1984 में मुंबई में हुई थी। गोविन्द सदाशिव घुर्ये 91 वर्ष तक जीवित रहे थे।

राधा कमल मुखर्जी : एक समाजशास्त्री : –
राधा कमल मुख़र्जी आधुनिक भारत के एक प्रसिद्ध समाजशास्त्री थे। वे लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति थे और साथ में वे अर्थशास्त्र & समाजशास्त्र के प्राध्यापक भी थे। उन्हीं के योगदान से उत्तर प्रदेश में सबसे पहले 1921 में लखनऊ विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र का अध्ययन शुरू हुआ था। इसलिए उत्तर प्रदेश में उन्हें समाजशास्त्र का जनक माना जाता है।

वर्तमान में देश में समाजशास्त्र विषय के विकास के लिए कुछ शोध संस्थान भी स्थापित किये गए हैं।

समाजशास्त्र के अध्ययन का लाभ : –
1. समाजशास्त्र के अध्ययन करने वाले व्यक्ति सामाजिक समस्याओं का हल आसानी से कर लेते हैं।
2. भारत के गांवों के उत्थान में समाजशास्त्र के विशेषज्ञों का काफी योगदान रहा है।
3. समाजशास्त्र के अध्ययन करने वाले छात्र का भारत या विश्व के किसी भी देश में अच्छा करियर विकल्प उपलब्ध है।

Leave a Comment

error: Content is protected !!